Monday, July 11, 2011

मेरी मोहब्बत मेरी खता बन गई........

 
मेरी मोहब्बत मेरी खता बन गई
ये दीवानगी मेरी सजा बन गई।
उनकी मासूमियत पर फिदा हुए इस तरह
उन्हें पाने की तमन्ना जिंदगी की अदा बन गई।

विशाल जैन, घुवारा, छतरपुर (मप्र)

वो दिल चुराके दिल अपना छुपाए जाते हैं
खिलौने जैसा वो मुझको सजाए जाते हैं।
लबों पे जबसे लिखा उसने मेरे ताजमहल
हैं यमुना इश्क़ की और हम नहाए जाते हैं।

उमाश्री, होशंगाबाद (मप्र)

तमन्नाओ में भी आपको याद करेंगे..

जिंदगी एक अभिलाषा है,
क्या अजीब इसकी परिभाषा है
जिंदगी क्या है मत पूछो ए दोस्तो,
संवर गई तो दुल्हन, बिखर गई तो तमाशा है।

शिवांगी सिंह,
भरतपुर (राज.)

आज सोचा सलाम भेजूं
आप मुस्कुराएं ऐसा पैगाम भेजूं।
कोई फूल तो मुझे मालूम नहीं
जो खुद गुलशन है उसे क्या गुलाब भेजूं।

नरेंद्र तायवाड़े,
राजनांदगांव (छग)

तमन्नाओं में भी आपको याद करेंगे
आपकी हर बात पर ऐतबार करेंगे।
आपको फोन करने को तो नहीं कहेंगे
पर आपके फोन का इंतजार करेंगे।

दयाशंकर प्रजापति,
पनवाड़ी (मप्र)

याद करने वालों ने सलाम भेजा है...

 
दोस्त ने दोस्त को गुलाब भेजा है

हैतारों ने आसमान से पैगाम भेजा है

ए हवा जाकर कह दो भूल जाने वालों से

याद करने वालों ने सलाम भेजा है।



सोनू कुमारी सोनी, मंदसौर (मप्र)




प्यार देने से प्यार मिलता है,

प्यार से ही करार मिलता है।

दोस्ती नाम है निभाने का,

बड़ी मुश्किल से यार मिलता है।



दलवीर सोलंकी ‘परवाना’, भरतपुर (राज.)



अरमान सारे जाग उठे ख्वाब-ए-नाज़ से

अब तो आकर मिलो हमसे, उसी अंदाज़ से।

इंतजार में हैं आज भी उदास सूनी गलियां

चले आना फिर कभी दिल की आवाज से।



अमर मलंग, कटनी (मप्र)


 

आदाब अर्ज: जो ख़ुद गुलशन है उसे क्या गुलाब भेजूं ।

 
 जिंदगी एक अभिलाषा है,
क्या अजीब इसकी परिभाषा है
जिंदगी क्या है मत पूछो ए दोस्तो,
संवर गई तो दुल्हन, बिखर गई तो तमाशा है।

शिवांगी सिंह, नई दिल्ली

आज सोचा सलाम भेजूं
आप मुस्कुराएं ऐसा पैग़ाम भेजूं।
कोई फूल तो मुझे मालूम नहीं
जो ख़ुद गुलशन है उसे क्या गुलाब भेजूं।

राहुल सिंगला, पटिलाया

तमन्नाओं में भी आपको याद करेंगे
आपकी हर बात पर ऐतबार करेंगे।
आपको फोन करने को तो नहीं कहेंगे
पर आपके फोन का इंतजार करेंगे।

सुरेश कुमार, जालंधर

दोस्त ने दोस्त को गुलाब भेजा है
तारों ने आसमान से पैगाम भेजा है
ए हवा जाकर कह दो भूल जाने वालों से
याद करने वालों ने सलाम भेजा है।

सोनू कुमारी सोनी, एसबीएस नगर

प्यार देने से प्यार मिलता है,
प्यार से ही करार मिलता है।
दोस्ती नाम है निभाने का,
बड़ी मुश्किल से यार मिलता है।

दलवीर सोलंकी, बरनाला

अरमान सारे जाग उठे ख्वाब-ए-नाज से
अब तो आकर मिलो हमसे, उसी अंदाज से।
इंतजार में हैं आज भी उदास सूनी गलियां
चले आना फिर कभी दिल की आवाज से।

अमरजीत शर्मा, बठिंडा

Sunday, July 10, 2011

कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं


कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं ,
तुम कह देना कोई ख़ास नहीं .
एक दोस्त है कच्चा पक्का सा ,
एक झूठ है आधा सच्चा सा .
जज़्बात को ढके एक पर्दा बस ,
एक बहाना है अच्छा अच्छा सा .
जीवन का एक ऐसा साथी है ,
जो दूर हो के पास नहीं .
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं ,
तुम कह देना कोई ख़ास नहीं .
हवा का एक सुहाना झोंका है ,
कभी नाज़ुक तो कभी तुफानो सा .
शक्ल देख कर जो नज़रें झुका ले ,
कभी अपना तो कभी बेगानों सा .
जिंदगी का एक ऐसा हमसफ़र ,
जो समंदर है , पर दिल को प्यास नहीं .
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं ,
तुम कह देना कोई ख़ास नहीं .
एक साथी जो अनकही कुछ बातें कह जाता है ,
यादों में जिसका एक धुंधला चेहरा रह जाता है .
यूँ तो उसके न होने का कुछ गम नहीं ,
पर कभी - कभी आँखों से आंसू बन के बह जाता है .
यूँ रहता तो मेरे तसव्वुर में है ,
पर इन आँखों को उसकी तलाश नहीं .
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं ,
तुम कह देना कोई ख़ास नहीं

Monday, June 20, 2011

Badnaam ho gaye....




Kaayal the log mere, jab tak thaa door unse,
Nazdeek aayaaa tere, gumnaam ho gaye....

lagte the zehar mujhko, teer-e-lafz duniya ke,
teri zubaan se chhoote, jaise jaam ho gaye.

hum bhi the sikandar, is duniya ke shahanshah,
Ek baar tujhko dekha, gulaam ho gaye.

wo ram bane firte, khuda apne hi jahan ke,
dushman se bachne dubke, saddaam ho gaye,
Samandar kinare patthar, bikte the kaudiyon men,
jaa mandiron men pahunche, bedaam ho gaye,

maante hain ki kaafir hain, butein poojte firte hain,
tum kyon bebutii ke baad bhi, naakaam ho gaye,...

lafz bante nahin banaate, jod chhat pe baithe taare,
humne aansoo jo ek jodaa, tera naam ho gaye,

neeyat ye kaisi dekar bheja mujhe khudaya,
Itne hue sharif ke badnaam ho gaye....

कायल थे लोग मेरे, जब तक था दूर उनसे,
नज़दीक आया तेरे, गुमनाम हो गए....

लगते थे ज़हर मुझको, तीर-ए-लफ्ज़ दुनिया के,
तेरी जुबां से निकले, जैसे जाम हो गए.

हम भी थे सिकंदर, इस दुनिया के शहंशाह,
एक बार तुझको देखा, गुलाम हो गए.
वो राम बने फिरते, खुदा अपने ही जहाँ के,
दुश्मन से बचने दुबके, सद्दाम हो गए,

समंदर किनारे पत्थर, बिकते थे कौड़ियों में,
जा मंदिरों में पहुंचे, बेदाम हो गए,

मानते हैं कि काफिर हैं, बुतें पूजते फिरते हैं,
तुम क्यों बेबुती के बाद भी, नाकाम हो गए,

लफ्ज़ बनते नहीं बनाते, जोड़ छत पे बैठे तारे,
हमने आंसू जो एक जोड़ा, तेरा नाम हो गए,

नीयत ये कैसी देकर भेजा मुझे खुदाया,
इतने हुए शरीफ के बदनाम हो गए...

बचपन

बचपन में बताया था किसी ने
कि तारे उतने पास नहीं होते
जितने दिखते हैं।
नहीं समझा था मैं तब,
अब समझता हूँ।

बचपन में बताया था किसी ने
कि सूरज बड़ा दिखता चाँद से
फिर भी वो ज़्यादा दूर है।
नहीं समझा था मैं तब,
अब समझता हूँ।

बचपन में बताया था किसी ने
चलती गाड़ी पर कि पेड़ नहीं
हम भाग रहे हैं।
नहीं समझा था तब
अब समझता हूँ।

कोई पास होकर भी दूर कैसे होता है
नज़दीक दिखती चीज़ें कितनी दूर होती हैं
और हम भाग रहे होते हैं चीज़ों से
पता भी नहीं चलता
मान बैठते हैं कि क़िस्मत बुरी है
और चीजें भाग रहीं हैं हमसे।

अब समझता हूँ।