Monday, June 20, 2011

Badnaam ho gaye....




Kaayal the log mere, jab tak thaa door unse,
Nazdeek aayaaa tere, gumnaam ho gaye....

lagte the zehar mujhko, teer-e-lafz duniya ke,
teri zubaan se chhoote, jaise jaam ho gaye.

hum bhi the sikandar, is duniya ke shahanshah,
Ek baar tujhko dekha, gulaam ho gaye.

wo ram bane firte, khuda apne hi jahan ke,
dushman se bachne dubke, saddaam ho gaye,
Samandar kinare patthar, bikte the kaudiyon men,
jaa mandiron men pahunche, bedaam ho gaye,

maante hain ki kaafir hain, butein poojte firte hain,
tum kyon bebutii ke baad bhi, naakaam ho gaye,...

lafz bante nahin banaate, jod chhat pe baithe taare,
humne aansoo jo ek jodaa, tera naam ho gaye,

neeyat ye kaisi dekar bheja mujhe khudaya,
Itne hue sharif ke badnaam ho gaye....

कायल थे लोग मेरे, जब तक था दूर उनसे,
नज़दीक आया तेरे, गुमनाम हो गए....

लगते थे ज़हर मुझको, तीर-ए-लफ्ज़ दुनिया के,
तेरी जुबां से निकले, जैसे जाम हो गए.

हम भी थे सिकंदर, इस दुनिया के शहंशाह,
एक बार तुझको देखा, गुलाम हो गए.
वो राम बने फिरते, खुदा अपने ही जहाँ के,
दुश्मन से बचने दुबके, सद्दाम हो गए,

समंदर किनारे पत्थर, बिकते थे कौड़ियों में,
जा मंदिरों में पहुंचे, बेदाम हो गए,

मानते हैं कि काफिर हैं, बुतें पूजते फिरते हैं,
तुम क्यों बेबुती के बाद भी, नाकाम हो गए,

लफ्ज़ बनते नहीं बनाते, जोड़ छत पे बैठे तारे,
हमने आंसू जो एक जोड़ा, तेरा नाम हो गए,

नीयत ये कैसी देकर भेजा मुझे खुदाया,
इतने हुए शरीफ के बदनाम हो गए...

बचपन

बचपन में बताया था किसी ने
कि तारे उतने पास नहीं होते
जितने दिखते हैं।
नहीं समझा था मैं तब,
अब समझता हूँ।

बचपन में बताया था किसी ने
कि सूरज बड़ा दिखता चाँद से
फिर भी वो ज़्यादा दूर है।
नहीं समझा था मैं तब,
अब समझता हूँ।

बचपन में बताया था किसी ने
चलती गाड़ी पर कि पेड़ नहीं
हम भाग रहे हैं।
नहीं समझा था तब
अब समझता हूँ।

कोई पास होकर भी दूर कैसे होता है
नज़दीक दिखती चीज़ें कितनी दूर होती हैं
और हम भाग रहे होते हैं चीज़ों से
पता भी नहीं चलता
मान बैठते हैं कि क़िस्मत बुरी है
और चीजें भाग रहीं हैं हमसे।

अब समझता हूँ।

मन के साथ

मन के पीछे चलने वाले,
मन के साथ भटकना होगा।

हाँ, अभी देखी थी मन ने
रंग-बिरंगी-सी वह तितली
फूल-फूल पे भटक रही थी
जाने किसकी खोज में पगली।

पर वह पीछे छूट गई है
इन्द्रधनुष जो वह सुन्दर है
अब उसको ही तकना होगा।

मन के पीछे चलने वाले,
मन के साथ भटकना होगा।
बच्चों-सा जो कल सीधा था
और कभी किशोर-सा चंचल
आज वयस्कों-सा वह दूर, क्यों
रूप बदलता है पल-पल?
मन घबराए, गुस्सा आए
चोट लगे, आँसू आ जाएँ
हर कुछ को ही सहना होगा।
मन के पीछे चलने वाले,
मन के साथ भटकना होगा।

बड़े दिनों के बाद

बड़े दिनों के बाद आज
सूरज से पहले जगी,
बड़े दिनों के बाद सुबह की
ठंढी हवा मुझपर लगी।
बड़े दिनों के बाद पाया
मन पर कोई बोझ नहीं,
बड़े दिनों के बाद उठकर
सुबह नयी-नयी सी  लगी।
बड़े दिनों के बाद दिन के
शुरुआत की उमंग जगी,
बड़े दिनों के बाद मन में
पंख से हैं लगे कहीं।
बड़े दिनों के बाद आज
मन में एक कविता उठी,
बड़े दिनों के बाद आज,
कविता ब्लॉग पर लिखी।

मन

मन क्यों ना तू खुश होता रे?

जब थीं दिल में उमंगें जागी,
जब सपने नए मिले थे सारे,
कितनी मन्नतें तब माँगी,
कितने देखे टूटते तारे।

अब जब झोली में हैं आए,
क्यों है तू यों थका-थका रे।
रस्ते का क्यों दर्द सताए,
सामने मंज़िल बाँह पसारे।

मन क्यों ना तू खुश होता रे?

खुशी न जाने क्यों नहीं आती!

मंज़िल क्यों वैसी नहीं लगती,
जैसी थी सपनों में भाती,
जो भी पीछे छोड़ आया हूँ,
अलग ये उससे नहीं ज़रा सी।

प्रश्न है खुद से जिसको ढूँढ़ा
क्या वो कोई मरीचिका थी?
और उसे सब कुछ दे डाला
बची है बस ये राख चिता की।

खुशी न जाने क्यों नहीं आती!

मां को कैसा लगता होगा?


मां को कैसा लगता होगा?
जन्मा होगा जब कोई फूल
सारे दुःख भूली होगी
देख अपने लाल का मुंह ।
मां को कैसा लगता होगा?
बढ़ते हुए बच्चों को देख
हर सपने पूरी करने को
होगी तत्पर मिट जाने को।
मां को कैसा लगता होगा?
बच्चे हुए होंगे जब बड़े
और सफल हो जीवन में
नाम कमाएं होंगे ख़ूब ।

मां को कैसा लगता होगा?
बच्चे समझ कर उनको बोझ
गिनने लगे निवाले रोज़
देते होंगे ताने रोज़।
मां को कैसा लगता होगा?
करके याद बातें पुरानी
देने को सारे सुख उनको
पहनी फटा और पी पानी।

मां को कैसा लगता होगा?
होगी जब जाने की बारी
चाहा होगा पी ले थोड़ा
बच्चों के हाथों से पानी।
मां को कैसा लगता होगा?
जा बसने में बच्चों से दूर
टकटकी बांधें देखती होगी
उसी प्यार से भरपूर।
मां को कैसा लगता होगा?
मां को कैसा लगता होगा?

तुम बहुत याद आते हो

जब से तुम गये हो
तबसे
जाने कितनी बार
बदला हे गंगा-जमुना ने
रंग अपना
और
पहना -उतारा है
इस शहर ने
ढंग नया-नया

आज
जब पहले की तरह
उदास होता हूँ
और कोई समझाता नहीं
आँसू पोंछ लेने को
अपनी रूमाल थमाता नहीं
तब..........
ऐ दोस्त! तुम बहुत याद आते हो

एक ही थाली में
खाते थे, आधा-आधा
तुम मेरी भूख में हिस्सेदार थे
मेरी धूप के
मेरी छांव के
बराबर
के सांझीदार थे
जब चौराहे पर खड़ा
मैं, कोई एक रास्ता चुन नहीं पाता हूँ
अलग दिखने की चाह लिए, खड़े-खड़े
भीड़ में घुल जाता हूँ
और कोई बचाता नहीं
तब...
ऐ दोस्त !तुम बहुत याद आते हो

जब
रातों रात बदल जाते हैं पोस्टर
शहर के
और मुझको ख़बर नहीं होती
सड़क के किनारे, खुले नल पे
किसी की नज़र नहीं होती
नकली हँसी से जब जी भर जाता है
मन का गुबार, कहीं निकल नहीं पाता है
तब...
ऐ दोस्त़!तुम बहुत याद आते हो

उनका मज़ा

हमारे पेशेंस को आज़माकर, उन्हें मज़ा आता है
दिल को खूब जलाकर, उन्हें मज़ा आता है।

खूब बातें करके जब हम कहते हैं "अब फ़ोन रखूँ?"
बैलेंस का दिवाला बनाकर, उन्हें मज़ा आता है।

उन्हें मालूम है नौकरीवाला हूँ, मिलने आ नहीं सकता
पर मिलने की कसमें खिलाकर, उन्हें मज़ा आता है।

हम तो यूँ ही नशे में हैं, हमें यूँ न देखो
मगर जाम-ए-नैन पिलाकर, उन्हें मज़ा आता है।

हम खूब कहते हैं शादी से पहले यह ठीक नहीं
सोये अरमान जगाकर, उन्हें मज़ा आता है।

वैसे खाना तो वो बहुत टेस्टी बनाती हैं
मगर खूब मिर्च मिलाकर, उन्हें मज़ा आता है।

वो जानती हैं, हमारी कमज़ोरी क्या है, तभी
प्यार ग़ैर से जताकर, उन्हें मज़ा आता है।

शब्दार्थ-पेशेंस- धैर्य, बैंलेस- उपलब्ध धनराशि, टेस्टी- स्वादिष्ट।

कल का मंज़र

पतझड़ के मंज़र से कभी दुःखी मत होना
बहुत जल्द दरख़्तों में पत्ते पड़ने वाले हैं।

नेताओं की हरकतों को पागलपन न समझना
ये तो अविलम्ब कुत्ते की मौत मरने वाले हैं।

आखिर कब तक उन रिश्तों को बचाकर रखोगे?
जो थोड़ी भी हवा में आकर सड़ने वाले हैं।

शिखर-वार्ता को बॉर्डर की सच्चाई न समझो
मौका मिलते ही ये सैनिक लड़ने वाले हैं।

अभी क्या, अभी तो चाँद पर जा रहे हैं
थोड़ा सब्र करो, कुछ ही दिनों में तारे पकड़ने वाले हैं।

तुम तो एक अरब तेरह करोड़ पर घबरा गये
जबकि पचास साल में, दो अरब तक बढ़ने वाले हैं।

बहनो! गुंडों से बचाव, खुद ही करना सीख लो
यह न सोचो, पुलिसवाले इन्हें जकड़ने वाले हैं।

शब्दार्थ-
दरख़्त- पेड़, बॉर्डर- सीमा, एक अरब तेरह करोड़- भारत की वर्तमान जनसंख्या, दो अरब- भारत के भविष्य की जनसंख्या।

डटे रहो (देशप्रेमियों और भाषाप्रेमियों के नाम)

तुम्हारी राष्ट्र-सेवा पर जब मुस्कुराने लगें लोग
तुम्हें तुम्हारा भविष्य दिखाकर डराने लगें लोग।।

तो मत घबराना, डटे रहना
उन्हें भी मत कुछ कहना
हर आक्षेप सहज ही सहना
ग्रेट वॉल की भाँति कभी न ढहना।

इनमें से कइयों ने तेरी तरह शुरुआत की थी
तब इन्हीं दरिंदों ने उन पर आघात की थी।

जब वे हथियार डाल दिए थे
भीड़ ने ढ़ेरों उपहार दिए थे।

अब ये भी भीड़ की भीड़ हैं
इनका अगला लक्ष्य तुम्हारे नीड़ हैं।

ये तो ख़ूनी राहों पर चिराग जलाते रहेंगे।
किसी के जगने पर उसे सुलाते रहेंगे।।
मातृभाषा, मातृभूमि पर प्राण न्योछावर करो
वरना ये परतंत्री हमारी नस्लों को खाते रहेंगे।।



शब्दार्थ-
ग्रेट वॉल- चीन की महान दीवार, नीड़- आशियाना, निवास, घर

गृहनिर्माण एवं प्रवेश मुहूर्तादि सूत्र-------

यदाकदा ऎसा भी देखने को मिल जाता है कि अपने लिए किसी भवन आदि के निर्माण समय सभी कुछ विधिपूर्वक एवं शुभ मुहूर्तादि में किया गया, लेकिन उसके बावजूद भी उस भवन में निवास करने पर जीवन में कष्टों,परेशानियों, विघ्न-बाधाओं का सामना करना पड जाता है. इसका क्या कारण है ?
जहाँ तक मेरा विचार है, इसके पीछे प्रथम मूल कारण तो यह हो सकता है कि मुहूर्तादि का शोधन भली प्रकार से न किया गया हो तथा दूसरा कारण उस भवन में किसी बडे वास्तु दोष का होना.

अगर भली प्रकार गणना कर के मुहूर्त निर्धारण किया जाए, वास्तु पूजनादि कर्म करके प्रवेश किया जाए, तो उसमें निवास करने वाले गृहस्वामी एवं उसके कुटुम्बीजनों को किसी प्रकार की कोई हानि-परेशानी का सामना नहीं करना पडता. इसलिए भारतीय दर्शन, एवं हिन्दू संस्कृति में मुहूर्त का विशेष महत्व स्वीकार किया गया है. और यह मुहूर्त भी किसी विद्वान ज्योतिषी(जो वास्तु का भी ज्ञाता हो) से ही निकलवाना चाहिए. ऎसा करने से गृहस्वामी सभी प्रकार से शांती एवं सुख-समृद्धि को प्राप्त करता है. लेकिन यथासंभव अधिक वास्तुदोष वाले मकान-दुकान या भूमी को कभी लें ही नहीं और छोटे-मोटे वास्तु दोष वाली स्थिति में सर्वप्रथम उसका भी सटीक निवारण या निराकरण करवा अवश्य करवा लेना चाहिए. तत्पश्चात उस स्थान को उपयोग में लाया जाए तो ऎसा स्थान निश्चित रूप से कल्याणकारी सिद्ध होता है.
गृहनिर्माण एवं प्रवेश मुहूर्तादि सूत्र-------
  • मेष, वृष, कर्क, सिँह, तुला, वृश्चिक, मकर एवं कुंभ राशि में सूर्य के होने पर भवन की नींव खोदने-रखने से, या गृह निर्माणारंभ करने से गृहस्वामी सभी प्रकार से धन-समृद्धि, यश-प्रतिष्ठा एवं सुख-शान्ती से लाभान्वित होत है. इसके ठीक विपरीत मिथुन, धनु तथा मीन राशि में सूर्य के होने पर गृहारम्भ करने से न तो वो कार्य समय पर समाप्त हो पाता है, उल्टे विभिन्न प्रकार की आर्थिक एवं मानसिक परेशानियों का सामना भी करना पडता है. इसलिए इन समयावधियों में किसी भी प्रकार के निर्माण कार्य से सदैव बचना चाहिए.
  • गृहारम्भ में आश्विनी, रोहिणी, मृगशिरा, पुष्य, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाती, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, उत्तराषाढा, श्रवण, उत्तराभाद्रपद और रेवती------ये समस्त नक्षत्र ग्राह्य हैं. भरणी, कृतिका आदि अन्य नक्षत्रों में कभी भी निर्माणारम्भ नहीं करना चाहिए.
  • तिथियों में केवल द्वितीया, तृतीया, पंचमी, षष्ठी, सप्तमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी एवं पूर्णिमा ही इस कार्य के लिए ग्राह्य हैं. ये सभी तिथियाँ एक प्रकार से महाशुभप्रद हैं. इनके अतिरिक्त प्रतिपदा(एकम/पडवा) आदि को गृहारम्भ करना परिवार की स्त्रियों एवं धन हेतु हानिकारक सिद्ध होता है. अमावस्या को यदि आरम्भ किया जाए तो मन में एक प्रकार से भ्रम एवं भय की स्थिति बनी रहती है.
जब नवीन भवन आदि का निर्माण पूर्ण रूप से संपन्न हो जाए, उसमें दरवाजे आदि की भी संपूर्ण व्यवस्था हो जाए----तो उस भवन में प्रवेश(गृहप्रवेश)हेतु आप मुख्य द्वार की दिशा अनुसार अपने लिए शुभ समय का चुनाव कर सकते हैं.जैसे कि......
  • मुख्यद्वार यदि पूर्व की दिशा में हो तो रेवती और मृगशिरा नक्षत्रों में गृह प्रवेश शुभ रहता है.
  • दक्षिण दिशा में द्वार होने पर उत्तराफाल्गुनी और चित्रा नक्षत्र अति शुभफलदायी रहते हैं.
  • पश्चिम दिशा में मुख्यद्वार होने पर अनुराधा अथवा उत्तराषाढा में से किसी नक्षत्र को गृहप्रवेश करना कल्याणकारी है.
  • यदि मुख्यद्वार उत्तरदिशा में हो, तो उत्तराभाद्रपद और रेवती नक्षत्र शुभ हैं.

मुहूर्त विचार की अनिवार्यता.....

ज्योतिष शास्त्र का प्रमुख स्तम्भ है-----मुहूर्त विचार! मुहूर्त का आशय यह जानने से है कि कौन सा कार्य कब किया जाए, जिससे कि व्यक्ति को उस कार्य में निर्विघ्नता प्राप्त हो. उसे कार्य में सफलता प्राप्त हो सके. यदि गहराई से देखें, तो पायेंगें कि हमारे आसपास जो कुछ भी घटित हो रहा है, वह सब एक अदृश्य शक्ति द्वारा नियन्त्रित है, यहाँ तक कि स्वयं काल(समय) भी. आकाशमंडल में ग्रहों के द्वारा उनके अपनी कक्षा में परिभ्रमण की गति के अनुसार हर क्षण नये-नये संयोग बनते रहते हैं. उनमें जहाँ कुछ अच्छे संयोग होते हैं, तो वहीं कुछ खराब भी होते हैं. अच्छे संयोगों की गणना कर के उनका उचित समय पर जीवन में इस्तेमाल करना ही शुभ मुहूर्त पर कार्य सम्पन्न होना होता है.
यहाँ हो सकता है कि आप में से ही कोई ये सवाल भी कर बैठे कि भला क्या मुहूर्त पर कार्य करने से भाग्य बदल जाता है ? अर्थात यदि भाग्य में कोई उपलब्धि न हो, तो अच्छे मुहूर्त पर कार्य कर के भी क्या हम वस्तु विशेष को प्राप्त कर सकते हैं ?
ये ठीक है कि मुहूर्त हमारे भाग्य को तो नहीं बदल सकता, लेकिन कार्य की सफलता के पथ को तो सुगम बना सकता है. जिस प्रकार, कि यदि हमें किसी कार्य से कहीं जाना हो और बाहर आंधी, तूफान या मूसलाधार बारिश पड रही हो, तो निश्चित है कि गंतव्य पर पहुँचना बहुत कठिन हो जाएगा और यदि मौसम अच्छा हो, तो वही यात्रा हमारे लिए सुगम और आनन्ददायक हो जाएगी. इसी प्रकार से शुभ मुहूर्त में किया गया कोई भी कार्य सुगम हो जाता है. साथ ही यदि किसी प्रकार की अन्य हानि का होना लिखा है, तो वह क्षीण या कम हो जाती है. कहने का तात्पर्य यही है कि भाग्य बदले या न बदले, परन्तु जीवन के महत्वपूर्ण कार्यों को शुभ मुहूर्त में किया जाए तो भी व्यक्ति जीवन में किसी सीमा तक निर्विघ्नता एवं खुशहाली प्राप्त कर सकता है.
वैदिक ज्योतिष में जीवन के समस्त कार्यों के लिए अलग-अलग शुभ मुहूर्तों का विधान है. मुहूर्त काल गणना के अनुसार दिन एवं रात्रि में कुल 30 मुहूर्त होते हैं------15 दिन में और 15 रात्रि में. इस प्रकार एक मुहूर्त काल का समय होता है--48 मिनट और 24 सैकिंड. इसके अतिरिक्त तिथि, वार, नक्षत्र इत्यादि के आधार पर भी विभिन्न प्रकार के शुभाशुभ मुहूर्त निर्मित होते हैं-----जिन्हे योग कहा जाता है. उनका उल्लेख करने का यहाँ कोई औचित्य भी नहीं है, क्योंकि पाठकों की जानकारी हेतु यहाँ हम सिर्फ प्रतिदिन निर्मित होने वाले मुहूर्त के बारे में बात कर रहे हैं.
दिनरात के (रूद्र मुहूर्त से समुद्रम प्रयन्त) कुल 30 विभिन्न प्रकार के मुहूर्तों में एक मुहूर्त आता है----अभिजीत मुहूर्त जिसे कि "विजय मुहूर्त" भी कहा जाता है. यह दिन का अष्टम मुहूर्त होता है, जो कि अभिजीत नामक नक्षत्र के आधार पर निर्मित होता है. प्रतिदिन मध्याँह काल में लगभग 11:36 से 12:24 तक का समय इस मुहूर्त का रहता है. इस समय अवधि में नवीन व्यवसाय आरम्भ, गृह-प्रवेश अथवा नींव डालना, निर्माण करना आदि किसी भी नये कार्य का आरम्भ व्यक्ति के लिए शुभ फलदायी एवं किए गए कार्य में उसे निर्विघ्नता प्रदान करता है.
बेशक कुछ लोग इन सब पर भले ही विश्वास न करें लेकिन ये बात अनुभवसिद्ध है कि व्यक्ति की सफलता, असफलता और जीवन स्तर में परिवर्तन के संदर्भ में मुहूर्त की महत्ता को किसी भी तरह से अलग नहीं किया जा सकता.

सत्य की कथा या कथा में छिपा सत्य.............. ( श्री सत्यनारायण व्रत कथा रहस्य)

भला हिन्दू धर्म का कौन सा ऎसा व्यक्ति होगा, जो कि सत्यनारायण की कथा से परिचित न हो.इस कथा की लोकप्रियता का आंकलन आप इसी बात से कर सकते हैं कि यह कथा उतर भारत के हिन्दू परिवारों के तो जीवन का एक अभिन्न अंग बन चुकी है.हालाँकि धर्म शास्त्रों में इस व्रत कथा को कोई स्थान नहीं, किन्तु रूढ-धर्म में इसका स्थान बेहद उच्च है. लोगों की यह धारणा है कि इस कथा से मनोकामनाऎँ सिद्ध होती हैं. लेकिन इस कथा में जो एक अजीब सी बात है और जिसके बारे में अक्सर बहुत से लोगों के मन में शंका और जिज्ञासा भाव भी रहता हैं, वो ये कि-----इसके सम्पूर्ण अध्यायों में सिर्फ कथा महात्मय का ही वर्णन पढने को मिलता है, मूल कथा क्या है ? यह कहीं नहीं मिलता. 
इस व्रत में सत्यनारायण की पूजा, कथा-श्रवण और प्रसाद भक्षण ऎसे तीन मधुर विभाग हैं. शायद इसी कारण इस व्रत में सत्य की जो महिमा है, वह लोगों को ध्यान में नहीं आती. लोगों का ध्यान उस ओर आकर्षित करने के लिए यह एक छोटा सा प्रयास किया जा रहा है. इस रहस्य को पढने से पूर्व जिन्हे सत्यनारायण की कथा मालूम न हो, उन्हे उसे जान लेना परम आवश्यक है.
धर्म मानव ह्रदय की अत्यन्त उच्च वृ्ति है; और वह मनुष्य के सम्पूर्ण जीवन में व्यापत रहती है. हमारा जीवन जैसा ही उत्तम, मध्यम अथवा हीन होता है, वैसा ही रूप हम धर्म को भी देते हैं. बुद्धि-प्रधान तार्किक लोग जहाँ धर्म-वृति को तत्वज्ञान का दार्शनिक रूप देते हैं, प्रेमी लोग उपान का रूप देते हैं, कर्मप्रधान कला-रसिक लोग पूजा-अर्चना इत्यादि तान्त्रिक विधियों द्वारा धर्म-वृति का पोषण करते हैं, तहाँ साधारण अज्ञ जन-समुदाय कथा-कीर्तन द्वारा ही धर्म के उच्च सिद्धान्तों का आंकलन कर सकता है.
धर्माचरण के फल के सम्बन्ध में भी यही सिद्धान्त् लागू होता है. धर्माचरण का फल अन्तस्थ और उच्च होता है, यह बात जिनके ध्यान में नहीं आ सकती, उनको सन्तोपार्थ पौराणिक कथाओं द्वारा बाह्य फल दिखलाने पडते हैं. धर्मतत्व कितने ही ऊँचें हों, किन्तु यदि उन्हे समाज में रूढ करना हो तो उन्हे समाज की भूमिका प्रयन्त नीचे उतरना पडता है. भगवान बुद्ध के उपदिष्ट तत्व उच्च, उदात्त और नैतिक थे, किन्तु जब उन्हे देवी-देवता, पूजा-अर्चना तथा मन्त्र-तन्त्र आदि का तान्त्रिक स्वरूप देकर महायान-पन्थ अवतरित हुआ, तभी वे तत्व अथवा उनका अंश आधे से अधिक एशिया को भाया. यह सत्यनारायण का व्रत भी इसी किस्म का उदाहरण है. इस व्रत के विस्तार और लोकप्रियता को देखकर यह कहने में कोई बाधा नहीं है कि लोगों के ह्रदय में निवास करने वाले धर्म का स्वरूप इस व्रत में दृष्टिगोचर होता है.
संसार का बहुत सा व्यवहार अल्प-प्राण लोगों के हाथ में होता है. बहु-जन-समाज की सत्य पर श्रद्धा बहुत थोडी होती है. संसार में चाहे जैसी हानि को सहन करने योग्य पुरूषार्थ लोगों में नहीं दिखाई देता. सत्यासत्य का कोई-न-कोई विधि-निषेध रक्खे बिना क्षणिक और दृष्यमान लाभ के लिए लोग पल में वचन भंग कर डालते हैं, नियमों को लात मार देते हैं और झूठे को सच्चा कर दिखलाते हैं. अतएव यह एक भारी प्रश्न है कि कामना-सिद्धि के लिए सत्य को धत्ता बताने वाले अज्ञ जनों को सत्य की लगन किस तरह लगनी चाहिए और ऎसी श्रद्धा किस तरह दृड करनी चाहिए, कि------सत्य-सेवन ही से अन्त में सर्वकामना-सिद्धि होती है. साधु-सन्तों नें, नियमों की रचना करने वालों नें तथा समाज के नेताओं नें अनेकों प्रकार से प्रयत्न कर देखे हैं. सत्यनारायण-व्रत के प्रवर्तक नें इस प्रश्न को अपनी शक्ति और बुद्धि के अनुसार सत्यनारायण की पूजा और कथा द्वारा हल करने का प्रयत्न किया है.
लोगों में सत्यनारायण की पूजा प्रचलित करने से दो हेतु सिद्ध होते हैं. लोग सत्य-सेवी हों यह एक उदेश्य; और सत्य की महिमा समाज में निरन्तर गाई जाया करे यह दूसरा उदेश्य हुआ. इस पूजा का नाम उत्सव या अनुष्ठान नहीं वरन् व्रत रक्ख गया है, यह बात भी इस जगह ध्यान में रखने योग्य है. उत्सव में हम लोग किसी भूत-वृतान्त का अथवा किसी धार्मिक तत्व का उत्साहपूर्वक सहर्ष स्मरण करते हैं, और व्रत में हम अपना जीवन उच्चतर बनाने के लिए किसी दीक्षा को ग्रहण करते हैं.
सत्यनारायण की कथा श्रवण करने और स्वादिष्ट प्रसाद भक्षण करने मात्र से सिर्फ यही कहा जाएगा कि घर में सत्यनारायण का कीर्तन हुआ. पर वह व्रत किसी तरह नहीं माना जा सकता. जिसे सत्यनारायण का व्रत करना हो उसे सर्वदा, सभी स्थानों में और सभी प्रसंगों में सत्य के आचरण की और अवसर आ पडने पर सभी लोगों को सत्य का महत्व समझा कर सत्य का कीर्तन करने की, दीक्षा ग्रहण करनी होगी. यदि इस तरह व्रताचरण किया जाए तो ही कर्ता को सत्यनारायण व्रत के करने का फल प्राप्त हो सकता है अन्यथा नहीं.
संसार में सभी लोग सामर्थ्य और सम्पति चाहते हैं. धर्म कहता है कि "तुम्हे भूतदया और सत्य-आचरण के द्वारा ही सच्ची सामर्थ्य और सम्पति प्राप्त हो सकती है". पुराणों नें इसी सिद्धान्त को एक सुन्दर रूपक देकर हमारे मन में बिठाया है. पुराणों का कथन है कि सामर्थ्य और सम्पत्ति, अर्थात शक्ति और लक्ष्मी, क्रमश: कल्याण की अभिलाषा और सत्य अर्थात शिव और सत्यनारायण के अधीन रहते हैं; क्योंकि शक्ति तो शिव की पत्नि है, और लक्ष्मी सत्यनारायण की. यदि तुम पति की आराधना करोगे तो पत्नि तुम पर अवश्य ही अनुग्रह करेगी. इस तरह धन, धान्य, सन्तति और सम्पत्ति आदि ऎहिक लक्ष्मी की इच्छा रखने वाले मनुष्यों को सत्य की अर्थात सत्यनारायण की आराधना करना इस व्रत में कहा गया है.
हिन्दूधर्म और हिन्दू-नीतिशास्त्र में सत्य का बहुत ही व्यापक अर्थ किया गया है. श्रीवेदव्यास नें महाभारत में सत्य के तेरह प्रकार कल्पित किए हैं. हिन्दू-शास्त्र और पुराणों को उलट-पुलट कर देखा जाए तो परस्पर बिल्कुल ही विभिन्न ऎसी तीन वस्तुऎं सत्य शब्द में समाविष्ट होती हैं.
पहली वस्तु----सत्य अर्थात यथार्थ कथन. जो बात जैसी हो, हम उसे जिस स्वरूप में जानते हों, अथवा जिस स्वरूप में बनी हुई हमने देखी हो, जिस स्वरूप में हमने उसकी विवेचना की हो, उसे ठीक ज्यों-की-त्यों कह देने का नाम है सत्य.
दूसरी वस्तु----सत्य अर्थात ऋतम, सृ्ष्टि का नियम अथवा किसी भी महाकार्य का विधान. 'सत्य ही से सूर्य उदय होता है','सत्य ही से वायु बहती है','सत्य ही से यह दुनिया चल रही है' इत्यादि शास्त्र-वचनों का अर्थ अनुलंघनीय नियम होता है.
तीसरी वस्तु-----सत्य अर्थात प्रतिज्ञा पालन. यहाँ सत्य के मानी हैं मुँह से एक बार निकले वचन का पालन करने की टेक. एक बार मुँह से निकले वचन को व्यर्थ न जाने देने की टेक. इसी सत्य के लिए कर्ण नें अपने कवच-कुण्डल दे दिए थे. इसी सत्य के लिए हरिश्चन्द्र नें राज्य का दान कर दिया और इसी सत्य के लिए श्रीराम बनवास गए थे. और तो क्या मातृभक्त पांडवों नें माता के वचन को सत्य करने के लिए एक द्रौपदी के साथ पाँचों भाईयों का विवाह कर लेने जैसे निन्दनीय कर्म को भी कर डाला. (लेकिन आजकल हमारी सत्य की धारणा अधिक विशुद्ध हो गई है. आज के जमाने में माँ के मुँह से निकले वचन को सत्य करने के लिए यदि पाँच भाई सम-विवाह करने को उद्यत हों जाएं, तो हम उन्हे मूर्ख और अय्याश कह डालेंगें.! अस्तु! पर यहाँ तो हम पुरानी धारणा के अनुसार सत्यनारायण की कथा का रहस्य खोलने चले हैं)
जन-समुदाय की दो वृतियाँ खास तौर पर बलवती होती हैं----लोभ और भय. इन दोनों वृतियों से लाभ उठाकर सत्यनारायण के कथाकार नें सत्य की महिमा गाई है. यदि आप सत्य का सेवन करें तो आपको सन्तति और सम्पत्ति आदि सभी सामग्री मिल जाएगी, समस्त संकट दूर होगें और मनोकामनाऎं परिपूर्ण होंगीं; यह तो हुआ लाभ. सत्य को भूल जाने से, सत्य को छिपाने से, तुरन्त ही आपके बाल-बच्चे मर जायेंगे, धन-धान्य का नाश हो जाएगा, दामाद पानी में डूब जाएगा, यदि राजा किसी को अन्याय से जेल में ठूँस देगा तो उसकी राजसत्ता नष्ट हो जाएगी और उस पर सभी तरह के संकट उमड पडेंगें; यह हुआ भय.
सत्य का फल सबके लिए समान फलप्रद है. सत्य-पालन का धर्म सभी वर्णों के लिए है, ऎसा बतलाने के लिए इस कथा में ब्राह्मण, राजा, बनिया और ग्वाला तथा लकडहारे लाए गए हैं और ऎसा मालूम होता है कि ऊपर बतलाये हुए सत्य के तीनों अर्थ सत्यव्रत में अभिप्रेत हैं. साधु और उसका दामाद दोनों अपनी की हुई प्रतिज्ञा को भूल जाते हैं; इसलिए उनपर सत्यदेव का कोप होता है. उसी के परिणामस्वरूप राजा चन्द्रकेतु भी उन दोनों से परामुख होता है. इन दुर्दैवी लोगों की स्त्रियों के ह्रदय में प्रतिज्ञा पालन का धर्म-भाव जागृत होते ही तुरन्त चन्द्रकेतु राजा के ह्रदय में भी न्याय-भाव जागृत होता है. साधु और उसका दामाद चोर-भय से दण्डी बाबा के सम्मुख झूठ बोलते हैं, इसलिए हमारे कथाकार उनके मिथ्याभाषण के कारण उन के सर्वस्व नाश हो जाने का अनुभव दिखलाकर निनाश-भय द्वारा उन्हे सत्यनिष्ठ बनाते हैं. कलावति पति-दर्शन के मोह में पडकर सत्यनारायण व्रत के नियम का भंग करती है. तुंगध्वज राजा भी अपनी वर्णोच्चता के अभिमान और सता के मद में सत्य का अनादर करता है. इससे कलावति का पति और तुंगध्वज का राज्य नष्ट हो जाता है, किन्तु उन का वह मोह और वह मद नष्ट हो जाने पर फिर से उनको अनन्त सौभाग्य प्राप्त हो जाता है. ऎसा बताकर कथाकार लोगों से कहते हैं, कि भाईयो! सच ही बोलो; अपने वचन का भंग मत करो तथा समाज के अथवा नैसर्गिक सर्वव्यापी नियमों का भंग मत करो, उनका उललंघन न करो. यदि इस तरह का व्यवहार करोगे तो तुम्हारा ऎहिक और पारलौकिक कल्याण अवश्य होगा. क्योंकि जो सत्य पर चलता है वह-------सर्वान कामानवाप्नोति, प्रेत्य सायज्य माप्नुयात !!( जीते जी सभी कामनाओं को पा जाता है और मरने पर सायुज्य, मोक्ष पाता है)
इस लोक-काव्य में सत्य को सर्व-रंग परित्यागी दण्डी का स्वरूप दिया है, यह बात भी ध्यान में रखने योग्य है. सत्यपूर्वक चलने से सम्पूर्ण वासनाओं का क्षय होकर मनुष्य में सन्यस्तवृति आ जाती है, और सत्याचरणी मनुष्य में अन्त:स्थ वृतियों के और बाह्य समाज के नियमन अथवा दण्डन करने की दण्डी शक्ति आ जाती है, यह इस कथा के रचनाकार नें बडी सुन्दरता के साथ सूचित किया है. सत्यनारायण की पूजा में सत्य का स्वरूप और महिमा बतलाने वाले कितने ही श्लोक बडे उच्च भाव से भरे हुए हैं, उन्हे यहाँ देकर श्रीसत्यनारायण की यथामति की गई इस उपासना को मैं यहाँ समाप्त करता हूँ------
नारायणस्त्वमेवासि सर्वेषां च ह्रदि स्थित:
प्रेरक: पैर्यमाणानां त्वया प्रेरित मानस: !!
त्वदाज्ञां शिरसा धृत्वा भजामि जनपावनम
नानोपासनमार्गणां भावकृद भावबोधक : !!

ग्रहों के वर्जित दान एवं कार्य

अक्सर अपने दैनिक जीवन में प्राय: हम एक कहावत विभिन्न अर्थों में सुनते हैं कि "नेकी कर दरिया में डाल" या नेकी करो और भूल जाओ. कभी-कभी अच्छे शब्दों में भी सुनते हैं, कि हम किसी के लिए कितना ही अच्छा क्यों न करें लेकिन बदले में हमेशा बुराई ही हाथ लगती है.
एक व्यक्ति किसी गरीब को भोजन कराता है, तो खाने वाला बीमार पड जाता है. किसी नें किसी को धन उधार दिया तो उसकी वसूली के समय देनदार नें कोई गलत कदम उठा लिया और बेचारा लेनदार बिना वजह मुसीबत में फँस गया. किसी की मदद करने चले तो उल्टा स्वयं ही अपने लिए मुसीबत मोल ले बैठे. अमूमन ऎसी सैकडों प्रकार की घटनायें आये दिन किसी न किसी प्रकार से किसी न किसी के साथ घटती ही रहती हैं.
दरअसल यह सब निर्भर करता है हमारी जन्मकुँडली में बैठे ग्रहों पर, जो यह संकेत करते हैं कि किस वस्तु का दान या त्याग करना अथवा कौन से कार्य हमारे लिए लाभदायक होगें और कौन सी चीजों के दान/त्याग अथवा कार्यों से हमें हानि का सामना करना पडेगा. इसकी जानकारी निम्नानुसार है.
जो ग्रह जन्मकुंडली में उच्च राशि या अपनी स्वयं की राशि में स्थित हों, उनसे सम्बन्धित वस्तुओं का दान व्यक्ति को कभी भूलकर भी नहीं करना चाहिए.
सूर्य मेष राशि में होने पर उच्च तथा सिँह राशि में होने पर अपनी स्वराशि का होता है. अत: आपकी जन्मकुंडली में उक्त किसी राशि में हो तो:-
* लाल या गुलाबी रंग के पदार्थों का दान न करें.
* गुड, आटा, गेहूँ, ताँबा आदि किसी को न दें.
* खानपान में नमक का सेवन कम करें. मीठे पदार्थों का अधिक सेवन करना चाहिए.
चन्द्र वृष राशि में उच्च तथा कर्क राशि में स्वगृही होता है. यदि आपकी जन्मकुंडली में ऎसी स्थिति में हो तो :-
* दूध, चावल, चाँदी, मोती एवं अन्य जलीय पदार्थों का दान कभी नहीं करें.
* माता अथवा मातातुल्य किसी स्त्री का कभी भूल से भी दिल न दुखायें अन्यथा मानसिक तनाव, अनिद्रा एवं किसी मिथ्या आरोप का भाजन बनना पडेगा.
* किसी नल, टयूबवेल, कुआँ, तालाब अथवा प्याऊ निर्माण में कभी आर्थिक रूप से सहयोग न करें.
मंगल मेष या वृश्चिक राशि में हो तो स्वराशि का तथा मकर राशि में होने पर उच्चता को प्राप्त होता है. ऎसी स्थिति में:--
* मसूर की दाल, मिष्ठान अथवा अन्य किसी मीठे खाद्य पदार्थ का दान नहीं करना चाहिए.
* घर आये किसी मेहमान को कभी सौंफ खाने को न दें अन्यथा वह व्यक्ति कभी किसी अवसर पर आपके खिलाफ ही कडुवे वचनों का प्रयोग करेगा.
* किसी भी प्रकार का बासी भोजन( अधिक समय पूर्व पकाया हुआ) न तो स्वयं खायें और न ही किसी अन्य को खाने के लिए दें.
बुध मिथुन राशि में तो स्वगृही तथा कन्या राशि में होने पर उच्चता को प्राप्त होता है. यदि आपकी जन्मपत्रिका में बुध उपरोक्त वर्णित किसी स्थिति में है तो :--
* हरे रंग के पदार्थ और वस्तुओं का दान नहीं करना चाहिए.
* साबुत मूँग, पैन-पैन्सिल, पुस्तकें, मिट्टी का घडा, मशरूम आदि का दान न करें अन्यथा सदैव रोजगार और धन सम्बन्धी समस्यायें बनी रहेंगी.
* न तो घर में मछलियाँ पालें और न ही मछलियों को कभी दाना डालें.
बृहस्पति जब धनु या मीन राशि में हो तो स्वगृही तथा कर्क राशि में होने पर उच्चता को प्राप्त होता है. ऎसी स्थिति में :--
* पीले रंग के पदार्थों का दान वर्जित है.
* सोना, पीतल, केसर, धार्मिक साहित्य या वस्तुएं आदि का दान नहीं करना चाहिए. अन्यथा "घर का जोगी जोगडा, आन गाँव का सिद्ध" जैसी हालात होने लगेगी अर्थात मान-सम्मान में कमी रहेगी.
* घर में कभी कोई लतादार पौधा न लगायें.
शुक्र जब जन्मपत्रिका में वृष या तुला राशि में हो स्वराशि तथा मीन राशि में हो तो उच्च भाव का होता है. अत ऎसी स्थिति में:--
* ऎसे व्यक्ति को श्वेत रंग के सुगन्धित पदार्थों का दान नहीं करना चाहिए अन्यथा व्यक्ति के भौतिक सुखों में न्यूनता पैदा होने लगती है.
* नवीन वस्त्र, फैशनेबल वस्तुएं, कास्मेटिक या अन्य सौन्दर्य वर्धक सामग्री, सुगन्धित द्रव्य, दही, मिश्री, मक्खन, शुद्ध घी, इलायची आदि का दान न करें अन्यथा अकस्मात हानि का सामना करना पडता है.
शनि यदि मकर या कुम्भ राशि में हो तो स्वगृही होता है तथा तुलाराशि में होने पर उच्चता को प्राप्त होता है. ऎसी दशा में :--
* काले रंग के पदार्थों का दान न करें.
* लोहा, लकडी और फर्नीचर, तेल या तैलीय सामग्री, बिल्डिंग मैटीरियल आदि का दान/त्याग न करें.
* भैंस अथवा काले रंग की गाय, काला कुत्ता आदि न पालें.
राहु यदि कन्या राशि में हो तो स्वराशि का तथा वृष(ब्राह्मण/वैश्य लग्न में) एवं मिथुन(क्षत्रिय/शूद्र लग्न में) राशि में होने पर उच्चता को प्राप्त होता है. ऎसी स्थिति में:--
* नीले, भूरे रंग के पदार्थों का दान नहीं करना चाहिए.
* मोरपंख, नीले वस्त्र, कोयला, जौं अथवा जौं से निर्मित पदार्थ आदि का दान किसी को न करें अन्यथा ऋण का भार चढने लगेगा.
* अन्न का कभी भूल से भी अनादर न करें और न ही भोजन करने के पश्चात थाली में झूठन छोडें.
केतु यदि मीन राशि में हो तो स्वगृही तथा वृश्चिक(ब्राह्मण/वैश्य लग्न में) एवं धनु (क्षत्रिय/शूद्र लग्न में) राशि में होने पर उच्चता को प्राप्त होता है. यदि आपकी जन्मपत्रिका में केतु उपरोक्त स्थिति में है तो :--
* घर में कभी पक्षी न पालें अन्यथा धन व्यर्थ के कामों में बर्बाद होता रहेगा.
* भूरे, चित्र-विचित्र रंग के वस्त्र, कम्बल, तिल या तिल से निर्मित पदार्थ आदि का दान नहीं करना चाहिए.
* नंगी आँखों से कभी सूर्य/चन्द्रग्रहण न देंखें अन्यथा नेत्र ज्योति मंद पड जाएगी अथवा अन्य किसी प्रकार का नेत्र सम्बन्धी विकार उत्पन होने लगेगा.