Monday, June 20, 2011

तुम बहुत याद आते हो

जब से तुम गये हो
तबसे
जाने कितनी बार
बदला हे गंगा-जमुना ने
रंग अपना
और
पहना -उतारा है
इस शहर ने
ढंग नया-नया

आज
जब पहले की तरह
उदास होता हूँ
और कोई समझाता नहीं
आँसू पोंछ लेने को
अपनी रूमाल थमाता नहीं
तब..........
ऐ दोस्त! तुम बहुत याद आते हो

एक ही थाली में
खाते थे, आधा-आधा
तुम मेरी भूख में हिस्सेदार थे
मेरी धूप के
मेरी छांव के
बराबर
के सांझीदार थे
जब चौराहे पर खड़ा
मैं, कोई एक रास्ता चुन नहीं पाता हूँ
अलग दिखने की चाह लिए, खड़े-खड़े
भीड़ में घुल जाता हूँ
और कोई बचाता नहीं
तब...
ऐ दोस्त !तुम बहुत याद आते हो

जब
रातों रात बदल जाते हैं पोस्टर
शहर के
और मुझको ख़बर नहीं होती
सड़क के किनारे, खुले नल पे
किसी की नज़र नहीं होती
नकली हँसी से जब जी भर जाता है
मन का गुबार, कहीं निकल नहीं पाता है
तब...
ऐ दोस्त़!तुम बहुत याद आते हो

No comments:

Post a Comment