यदाकदा ऎसा भी देखने को मिल जाता है कि अपने लिए किसी भवन आदि के निर्माण समय सभी कुछ विधिपूर्वक एवं शुभ मुहूर्तादि में किया गया, लेकिन उसके बावजूद भी उस भवन में निवास करने पर जीवन में कष्टों,परेशानियों, विघ्न-बाधाओं का सामना करना पड जाता है. इसका क्या कारण है ?
जहाँ तक मेरा विचार है, इसके पीछे प्रथम मूल कारण तो यह हो सकता है कि मुहूर्तादि का शोधन भली प्रकार से न किया गया हो तथा दूसरा कारण उस भवन में किसी बडे वास्तु दोष का होना.
अगर भली प्रकार गणना कर के मुहूर्त निर्धारण किया जाए, वास्तु पूजनादि कर्म करके प्रवेश किया जाए, तो उसमें निवास करने वाले गृहस्वामी एवं उसके कुटुम्बीजनों को किसी प्रकार की कोई हानि-परेशानी का सामना नहीं करना पडता. इसलिए भारतीय दर्शन, एवं हिन्दू संस्कृति में मुहूर्त का विशेष महत्व स्वीकार किया गया है. और यह मुहूर्त भी किसी विद्वान ज्योतिषी(जो वास्तु का भी ज्ञाता हो) से ही निकलवाना चाहिए. ऎसा करने से गृहस्वामी सभी प्रकार से शांती एवं सुख-समृद्धि को प्राप्त करता है. लेकिन यथासंभव अधिक वास्तुदोष वाले मकान-दुकान या भूमी को कभी लें ही नहीं और छोटे-मोटे वास्तु दोष वाली स्थिति में सर्वप्रथम उसका भी सटीक निवारण या निराकरण करवा अवश्य करवा लेना चाहिए. तत्पश्चात उस स्थान को उपयोग में लाया जाए तो ऎसा स्थान निश्चित रूप से कल्याणकारी सिद्ध होता है.
गृहनिर्माण एवं प्रवेश मुहूर्तादि सूत्र-------
जहाँ तक मेरा विचार है, इसके पीछे प्रथम मूल कारण तो यह हो सकता है कि मुहूर्तादि का शोधन भली प्रकार से न किया गया हो तथा दूसरा कारण उस भवन में किसी बडे वास्तु दोष का होना.
अगर भली प्रकार गणना कर के मुहूर्त निर्धारण किया जाए, वास्तु पूजनादि कर्म करके प्रवेश किया जाए, तो उसमें निवास करने वाले गृहस्वामी एवं उसके कुटुम्बीजनों को किसी प्रकार की कोई हानि-परेशानी का सामना नहीं करना पडता. इसलिए भारतीय दर्शन, एवं हिन्दू संस्कृति में मुहूर्त का विशेष महत्व स्वीकार किया गया है. और यह मुहूर्त भी किसी विद्वान ज्योतिषी(जो वास्तु का भी ज्ञाता हो) से ही निकलवाना चाहिए. ऎसा करने से गृहस्वामी सभी प्रकार से शांती एवं सुख-समृद्धि को प्राप्त करता है. लेकिन यथासंभव अधिक वास्तुदोष वाले मकान-दुकान या भूमी को कभी लें ही नहीं और छोटे-मोटे वास्तु दोष वाली स्थिति में सर्वप्रथम उसका भी सटीक निवारण या निराकरण करवा अवश्य करवा लेना चाहिए. तत्पश्चात उस स्थान को उपयोग में लाया जाए तो ऎसा स्थान निश्चित रूप से कल्याणकारी सिद्ध होता है.
गृहनिर्माण एवं प्रवेश मुहूर्तादि सूत्र-------
- मेष, वृष, कर्क, सिँह, तुला, वृश्चिक, मकर एवं कुंभ राशि में सूर्य के होने पर भवन की नींव खोदने-रखने से, या गृह निर्माणारंभ करने से गृहस्वामी सभी प्रकार से धन-समृद्धि, यश-प्रतिष्ठा एवं सुख-शान्ती से लाभान्वित होत है. इसके ठीक विपरीत मिथुन, धनु तथा मीन राशि में सूर्य के होने पर गृहारम्भ करने से न तो वो कार्य समय पर समाप्त हो पाता है, उल्टे विभिन्न प्रकार की आर्थिक एवं मानसिक परेशानियों का सामना भी करना पडता है. इसलिए इन समयावधियों में किसी भी प्रकार के निर्माण कार्य से सदैव बचना चाहिए.
- गृहारम्भ में आश्विनी, रोहिणी, मृगशिरा, पुष्य, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाती, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, उत्तराषाढा, श्रवण, उत्तराभाद्रपद और रेवती------ये समस्त नक्षत्र ग्राह्य हैं. भरणी, कृतिका आदि अन्य नक्षत्रों में कभी भी निर्माणारम्भ नहीं करना चाहिए.
- तिथियों में केवल द्वितीया, तृतीया, पंचमी, षष्ठी, सप्तमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी एवं पूर्णिमा ही इस कार्य के लिए ग्राह्य हैं. ये सभी तिथियाँ एक प्रकार से महाशुभप्रद हैं. इनके अतिरिक्त प्रतिपदा(एकम/पडवा) आदि को गृहारम्भ करना परिवार की स्त्रियों एवं धन हेतु हानिकारक सिद्ध होता है. अमावस्या को यदि आरम्भ किया जाए तो मन में एक प्रकार से भ्रम एवं भय की स्थिति बनी रहती है.
- मुख्यद्वार यदि पूर्व की दिशा में हो तो रेवती और मृगशिरा नक्षत्रों में गृह प्रवेश शुभ रहता है.
- दक्षिण दिशा में द्वार होने पर उत्तराफाल्गुनी और चित्रा नक्षत्र अति शुभफलदायी रहते हैं.
- पश्चिम दिशा में मुख्यद्वार होने पर अनुराधा अथवा उत्तराषाढा में से किसी नक्षत्र को गृहप्रवेश करना कल्याणकारी है.
- यदि मुख्यद्वार उत्तरदिशा में हो, तो उत्तराभाद्रपद और रेवती नक्षत्र शुभ हैं.
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